मैं जब ख़ुद से बाहर निकला क्या क्या मेरे अंदर निकला बरसों जिस को बाहर ढूँडा आख़िर अपने अंदर निकला मन में का'बा मन में काशी मन में ही गिरिजा-घर निकला मन ही कारन सब रोगों का मन ही ख़ुद चारागर निकला तन की जब अस्लिय्यत जानी मन से मरने का डर निकला जग से जीते मन से हारे मन सब से ताक़त-वर निकला मुझे लगा कोई ग़ुंडा होगा वो तो एक मिनिस्टर निकला हम ने समझा बूँद बराबर तू तो 'सदा' समंदर निकला