लोग कुछ राह-ए-मोहब्बत में ठहर जाएँगे हम कहाँ वो हैं जो ख़तरात से डर जाएँगे जानते ही नहीं ये ज़ख़्म दिए हैं किस ने लोग देते हैं तसल्ली कि ये भर जाएँगे उस ने ये कह के बँधाई है मिरी हिम्मत-ए-दिल आए हैं ग़म के ज़माने ये गुज़र जाएँगे देर से आएँगे वो दिल मिरा कहता है यही उल्टे मुँह पर कई इल्ज़ाम वो धर जाएँगे उस के आने के तो इम्काँ नज़र आते ही नहीं इसी उम्मीद में सब शाम सहर जाएँगे थोड़ी सी दार-ए-मोहब्बत की ज़रूरत है 'सुहैल' जो जरासीम हैं नफ़रत के वो मर जाएँगे