लुत्फ़ आने लगा बिखरने में एक ग़म को हज़ार करने में बस ज़रा सा फिसल गए थे हम इक बगूले पे पाँव धरने में कितनी आँखों से भर गई आँखें तेरे ख़्वाबों से फिर गुज़रने में मैं ने सोचा मदद करोगे तुम कम-नसीबी के घाव भरने में बुझते जाते हैं मेरे लोग यहाँ रौशनी को बहाल करने में किस क़दर हाथ हो गया ज़ख़्मी ख़ुद-कुशी तेरे पर कतरने में