मचलते तीर को आने तो दे निशाने तक तू इंतिज़ार तो कर उस के मुस्कुराने तक अजीब शख़्स है रूठा हुआ सा लगता है हँसा रहा है वो ख़ुद को मुझे हँसाने तक लगी है शर्त हवाओं से उन चराग़ों की जला रहा हूँ इन्हें देखिए बुझाने तक हमारी रूह में तूफ़ाँ उठाएगी कितने वो दिल की बात थिरकते लबों के आने तक हवा के दोष पे लिखता हूँ नाम मैं 'जौहर' है इस का ज़िम्मा सँभाले इसे ज़माने तक