महके हुए गुलों का चमन बोलने लगा वो चुप हुआ तो उस का बदन बोलने लगा आँचल है कहकशाँ तो वो ख़ुद भी है चाँद सा बाहोँ में मेरी आ के गगन बोलने लगा ताबानियों में उस की है मौज-ए-वफ़ा की गूँज दिन चुप हुआ तो दिल का रतन बोलने लगा बोली गई थी दर्द के मौसम में जो कभी फिर वो ज़बान अपना वतन बोलने लगा ख़ामोश रह के उस ने गुज़ारी थी ज़िंदगी वो शख़्स जब मरा तो कफ़न बोलने लगा दिल की हवेलियों के हुए आइने ख़मोश शहर-ए-अना में संग-ए-कुहन बोलने लगा आहन के शोर-ओ-शर में है 'असरार' वो असर लहजे में धुन के आज का फ़न बोलने लगा