महकते फूल जो हर-सू नज़र में रखता है वो शख़्स अपनी उदासी को घर में रखता है इसी लिए तो बुलंदी है उस के ज़ेर-ए-क़दम हुनर उड़ान के वो बाल-ओ-पर में रखता है हमें तो प्यार से दम भर की भी नहीं फ़ुर्सत तिरा जिगर है जो नफ़रत जिगर में रखता है हर एक राहगुज़र उस की क्यों न हो रौशन तिरा ख़याल जो अपने सफ़र में रखता है इसी लिए ही मुझे ख़ूबियाँ हुईं हासिल वो मेरी ख़ामियाँ अपनी नज़र में रखता है बदल ही देगा मुक़द्दर की सब लकीरों को वो ए'तिमाद जो दस्त-ए-हुनर में रखता है 'ज़हीन' फ़ैसले उस पर ही छोड़ दे सारे तू बात बात को क्यों ख़ैर-ओ-शर में रखता है