महव-ए-रुख़-ए-यार हो गए हम सो जी से निसार हो गए हम फ़ितराक से बाँध ख़्वाह मत बाँध अब तेरे शिकार हो गए हम दामन को न पहुँचे तेरे अब तक हर चंद ग़ुबार हो गए हम आता नहीं कोई अब नज़र में किस से ये दो-चार हो गए हम था कौन कि देखते ही जिस के यूँ आशिक़-ए-ज़ार हो गए हम हस्ती ही हिजाब थी जो देखा इस बहर से पार हो गए हम 'बेदार' सरिश्क-ए-लाला-गूँ से हम-चश्म-ए-बहार हो गए हम