मैं अपने आप को पहचान ही नहीं पाया इसी लिए मैं तुझे जान ही नहीं पाया ये देख कर वो परेशाँ है तेरी महफ़िल में किसी को उस ने परेशान ही नहीं पाया अभी से तुझ को पड़ी है विसाल की मिरी जाँ अभी तो हिज्र ने उन्वान ही नहीं पाया वो एक लम्हा मिरी ज़िंदगी पे तारी है जो एक लम्हा अभी आन ही नहीं पाया ख़ुशी ख़ुशी तिरी दुनिया को छोड़ आए हम ख़ुशी का जब कोई सामान ही नहीं पाया जवाज़ मिल न सका मुझ को अपने होने का सो अपने आप को इंसान ही नहीं पाया अजीब हिज्र किया हम ने हिज्र में 'मोमिन' विसाल-ए-यार का अरमान ही नहीं पाया