मैं अशरफ़ हूँ तो ये अंदाज़ क्यों है मिरी हस्ती मुझी पर राज़ क्यों है मिरी मंज़िल है जब अर्श-ए-मुअ'ल्ला तो फिर कोताही-ए-परवाज़ क्यों है किसी तूफ़ान का है पेश-ख़ेमा ये सारा शहर बे-आवाज़ क्यों है मरीज़-ए-इश्क़ ने क्या कह दिया ये परेशाँ इतना चारा-साज़ क्यों है अगर हैवानियत शामिल है इस में तो फिर इंसानियत पर नाज़ क्यों है नहीं है जो किसी सूरत भी लाएक़ उसी के वास्ते ए'ज़ाज़ क्यों है छुपाना है अगर बेबाक ग़म को तो चेहरा कर्ब का ग़म्माज़ क्यों है