मैं एक आतिश-ए-ग़म की ख़बर के पीछे हूँ उसी से टूटे हुए इक शरर के पीछे हूँ बहुत ही अजनबी दस्तक है सुन रहा हूँ उसे और एक डर में गिरफ़्तार दर के पीछे हूँ किसे तू ढूँढता फिरता है सर्द कमरों में मैं धूप से भरे मैदाँ में घर के पीछे हूँ ज़ियादा ठीक है वामांदगी उसे कहना जो कह रहा हूँ कि मैं रहगुज़र के पीछे हूँ हैं माह-ओ-साल ही ऐसे समझ नहीं आती कि आगे शाम के हों या सहर के पीछे हों ये ख़ूनीं खेल है रोज़-ए-अज़ल से जारी है वो मेरी जान के मैं उस के सर के पीछे हूँ ये तीर-ए-मर्ग है मुमकिन निकलना इस से नहीं यहीं कहीं मैं किसी एक दर के पीछे हूँ हसब से नाम से इज़्ज़त से मुझ को क्या लेना हवस का बंदा हूँ बस माल-ओ-ज़र के पीछे हूँ मिरे कलाम में 'शाहीं' न कर तलाश मुझे छुपा हुआ किसी दस्त-ए-हुनर के पीछे हूँ