मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था मिरा तमाम बदन रूह की कमान में था धनक जली थी फ़ज़ा ख़ून से मुनव्वर थी मिरे मिज़ाज का इक रंग आसमान में था जो सोचता हूँ उसे दिल में फूल खिलते हैं वो ख़ुश-निगाह नहीं था तो कौन ध्यान में था ये हादसा है कि दोनों ख़िज़ाँ-सरिश्त हुए मगर बहार का इक अहद दरमियान में था मुझे अज़ीज़ रही दुश्मनी की तल्ख़ी भी इस एक ज़हर से क्या ज़ाइक़ा ज़बान में था