थक चुका हूँ मैं ग़म लिखते लिखते By Ghazal << हर तरफ़ लौ है यहाँ पुरवाइ... मैं हूँ और मश्ग़ला-ए-जामा... >> थक चुका हूँ मैं ग़म लिखते लिखते तोड़ न दूँ क़लम लिखते लिखते मर्सिया कह गया हूँ मैं अपना शे'र तुम पर सनम लिखते लिखते अश्क में भीग जाता है काग़ज़ आँख होती है नम लिखते लिखते हाथ 'हावी' क़लम हुए मेरे उन का जौर-ओ-सितम लिखते लिखते Share on: