मैं कहाँ हूँ कि मिरा जिस्म तो साया है मिरा ये हक़ीक़त है कि हर ख़्वाब पराया है मिरा रू-ब-रू आइने में अक्स वो अपना ही सही ख़ुश हुआ हूँ कि मिरे घर कोई आया है मिरा तू मिरे इश्क़ से इंकार करेगा कैसे ख़ाल-ओ-ख़द में तिरे चेहरा उभर आया है मिरा क्यों मुझे बंद किया है सर-ए-तह-ख़ाना-ए-ज़ीस्त कुछ तो मालूम हो क्या जुर्म ख़ुदाया है मिरा आग फैली है कहाँ से मिरे चारों जानिब किस ने ऐ मौज-ए-हवा शहर जलाया है मिरा साँस लेने की जो कोशिश कभी की है 'तारिक़' मज़हका ख़ूब हवाओं ने उड़ाया है मिरा