मैं ख़ुश बहुत हूँ मुझ को फ़क़ीरी जो रास है वर्ना अमीर-ए-शहर बहुत बद-हवास है कितनी अज़ीम-तर मिरे होंटों की प्यास है जो लफ़्ज़ है तराई का अब उस के पास है किस ने गुलाब रंग शफ़क़ में मिला दिया हर फूल के बदन पे सुनहरी लिबास है कुछ इस लिए सफ़र पे सफ़र कर रहा हूँ मैं ना-आश्ना हयात को कुछ मुझ से आस है अच्छा तो ये था कुछ भी न होता सफ़र में साथ थक इस लिए गया हूँ कि सामान पास है आँखों की नींद से भी सुबुक-दोश कर गया तन्हाइयों में कौन मिरा ग़म-शनास है इक कशमकश सी रहती है सच और फ़रेब में वो दूर है ज़रूर मगर आस-पास है बाँधा हुआ है ख़ुद को सभी ने हिसार में ग़म बाँटने का वक़्त यहाँ किस के पास है कल जो समझ के छोड़ गया था शिकस्ता-पा मंज़िल पे आज देख के मुझ को उदास है अब तक की ज़िंदगी में तो समझा है बस यही दुनिया है इक फ़रेब-ए-नज़र इक क़यास है 'नाशिर' किसी से करता नहीं है शिकायतें शायद यही सबब है ज़बाँ में मिठास है