निगाह 'अक्स के हर ज़ाविए में छोड़ आया किसी को खोया हुआ आइने में छोड़ आया मिरा सुकून-ए-हक़ीक़ी सफ़र में मुज़्मर था मैं अपने घर को कहाँ रास्ते में छोड़ आया मिरी निगाह में तुम जिस को कर रहे हो तलाश उसे तो कब का किसी हादसे में छोड़ आया जो सारी रात मिरे आँसुओं में रौशन था उस इंतिज़ार को बुझते दिए में छोड़ आया ये कौन पूछे समुंदर से जा के साहिल पर मुसाफ़िरों को कहाँ रास्ते में छोड़ आया किताब-ए-ज़ीस्त का 'उन्वान क्या रखूँ 'नाशिर' मैं उस की याद को हर हाशिए में छोड़ आया