मैं नालों का अपने असर चाहता हूँ शब-ए-हिज्र की अब सहर चाहता हूँ ये लुत्फ़-ओ-करम आप के ख़ूब लेकिन मोहब्बत ब-रंग-ए-दिगर चाहता हूँ मैं क्या चाहता हूँ ये क्या पूछते हो मैं दुनिया में ज़ेर-ओ-ज़बर चाहता हूँ जुनून-ए-मोहब्बत की ये इंतिहा है कि तेरे ही दीवार-ओ-दर चाहता हूँ ये बातें तुम्हारी हैं पुर-लुत्फ़ नासेह ये क़िस्सा मगर मुख़्तसर चाहता हूँ बिगाड़ा है 'मंज़र' ये ज़ाहिद ने कैसा फ़रिश्ता ब-शक्ल-ए-बशर चाहता हूँ