मसर्रत-बख़्श हो आह-ए-सहर ऐसा भी होता है शब-ए-फ़ुर्क़त भी हो जाए बस ऐसा भी होता है बहुत देखे सितमगर फ़ित्ना-परवर बज़्म-ए-इम्काँ में मगर दुनिया में कोई फ़ित्ना-गर ऐसा भी होता है तुम्हारी चारासाज़ी काम आ जाए तो क्या कहना ये होता है बहुत ही कम मगर ऐसा भी होता है ब-वक़्त-ए-सुब्ह चश्म-ए-गुल में शबनम ये भी होता है फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का ये असर ऐसा भी होता है गुलिस्ताँ की फ़ज़ा में रंग-ओ-निकहत ढूँडने वालो रग-ए-गुल में छुपे हों नेश्तर ऐसा भी होता है तअम्मुल क्या है मंज़र दावत-ए-मिज़्गाँ किए जाओ दवा ख़ुद ढूँड ले ज़ख़्म-ए-जिगर ऐसा भी होता है