मैं ने कभी नज़र न की दिल-कशी-ए-हयात पर मेरी तमाम ज़िंदगी उन की जमालियात पर मुझ को हयात के सिवा चाहिए इक ग़म-ए-हयात तब-ए-ग़म-आफ़रीं मिरी रह न सकी हयात पर वो भी ग़यूर ओ शर्मगीं दिल भी नज़ाकत-आफ़रीं चोट लगी है बात से बात बढ़ी है बात पर चाँद है और चाँदनी हुस्न है और हुस्न-ए-यार मेरे हज़ार दिन निसार हुस्न की एक रात पर हुस्न यहाँ नज़र-फ़रेब दर्द यहाँ जिगर-गुदाज़ हाए कि मिट गया 'नुशूर' जल्वा-ए-बे-सबात पर