मैं नींदों का बहाना चाहती हूँ तिरे ख़्वाबों में आना चाहती हूँ जिसे सुन कर तू सब कुछ भूल जाए ग़ज़ल वो गुनगुनाना चाहती हूँ नए लहजे में तेरे है बनावट तिरा लहजा पुराना चाहती हूँ तिरा मिलना बहुत मुश्किल है लेकिन मैं क़िस्मत आज़माना चाहती हूँ तू ही जाने इरादा तेरा 'ज़रयाब' मगर मैं तुझ को पाना चाहती हूँ