मैं पूरे क़द से खड़ा हूँ अब इस यक़ीन के साथ नहीं है 'आरज़ी रिश्ता मिरा ज़मीन के साथ हमारी ज़ात की तकमील होने वाली है ज़रा सा क़ाफ़ लगाना है ‘ऐन शीन के साथ यहाँ पे साँप हैं बुत हैं छुरी है यार भी हैं 'अजीब मेला लगा है इक आस्तीन के साथ तुम अपनी आँखों से दिल से तो पूछ लो पहले कि मशवरा तो ज़रूरी है माहिरीन के साथ नज़र को दे के फ़रेब एक पर्दा उठने का 'अजब मज़ाक़ अज़ल से है नाज़िरीन के साथ अगर तू फूल से ख़ुशबू तलक सफ़र कर ले समझना 'इश्क़ मुकम्मल है तेरे दीन के साथ मैं बे-सबब कभी रोया तो ये खुला मुझ पर मकाँ भी रोते हैं 'ताहिर' कभी मकीन के साथ