मैं समझता था हक़ीक़त आश्ना हो जाएगा क्या ख़बर थी मेरी बातों से ख़फ़ा हो जाएगा रफ़्ता-रफ़्ता इब्तिला-ए-ग़म शिफ़ा हो जाएगा दर्द ही हद से गुज़रने पर दवा हो जाएगा हम पे तो पहले ही ज़ाहिर था मआल-ए-बंदगी पूजने जाओगे जिस बुत को ख़ुदा हो जाएगा तजरबे की आँच से आख़िर रक़ीब-ए-रू-सियह उन की क़ुर्बत से हमारा हम-नवा हो जाएगा आह जो सीने से निकलेगी फ़ुग़ाँ बन जाएगी अश्क जो आँखों से टपकेगा दुआ बन जाएगा दम-ब-दम जो साथ देने का किया करता था अहद किस को था मा'लूम कि इक दिन जुदा हो जाएगा छोड़ने वाले सर-ए-राहे हमें तेरे लिए ज़िंदगानी का सफ़र बे-मुद्दआ हो जाएगा इक निगाह-ए-लुत्फ़ वो पहली सी दिलदारी के साथ दान कर दीजे ग़रीबों का भला हो जाएगा सहल-तर होगा नजात-ए-ख़ल्क़ में क़र्ज़-ए-वफ़ा जान भी देगा अगर 'अख़्तर' अदा हो जाएगा