मैं सुनता रहता हूँ नग़्मे कमाल के अंदर कई सदाएँ परिंदों में डाल के अंदर जो वाहिमे मिरा अंदर उजाड़ सकते हैं मैं रख रहा हूँ उन्हें भी सँभाल के अंदर तमाम मसअले नौइयत-ए-सवाल के हैं जवाब होते हैं सारे सवाल के अंदर जगह जगह पे कोई तो हज़ार-हा नश्तर उतारता है रग-ए-एहतिमाल के अंदर तरह तरह के गुलाब आतिशीं सलाख़ के साथ निकाल लाता हूँ सूराख़ डाल के अंदर ये सिलसिला ज़रा मौक़ूफ़ हो तो देखूँगा ख़याल और हैं कितने ख़याल के अंदर तड़पते रहते हैं दिल के नवाह में 'जावेद' बहुत से अज़दहे जीभें निकाल के अंदर