मैं ने घबरा के जो भीगे हुए लब चूमे थे वक़्त-ए-रुख़्सत तिरे रोने के सबब चूमे थे अपने होंटों के तक़द्दुस पे बहुत नाज़ न कर तू ने पत्थर के तराशे हुए रब चूमे थे उस की आँखों से जो रुख़्सार पे ढलके आँसू मैं ने मोती की तरह प्यार से सब चूमे थे आसमाँ को भी तो मेराज मिली जब उस ने पाँव इंसान के मेराज की शब चूमे थे मुझ को वहशी न समझ तेरे महकते हुए लब मैं ने ग़फ़लत में भी बा-हद्द-ए-अदब चूमे थे लम्स अभी तक है मिरे होंटों पे उन होंटों का और मुझे ये भी नहीं याद कि कब चूमे थे