न पेश-ए-ज़ुल्म किसी तौर ख़म किया जाए हज़ार बार भी गर सर क़लम किया जाए बहुत से लोग तो हर वक़्त इस फ़िराक़ में हैं किसी तरह मिरी हिम्मत को कम किया जाए वो सोचता है फ़क़त मैं ही मैं रहूँ हर-सू मैं चाहता हूँ कि इस मैं को हम किया जाए वो जिन की कोई फ़ज़ीलत कहीं नहीं मिलती वो कह रहे हैं हमें मोहतरम किया जाए सुकून-ए-क़ल्ब इन्हीं ख़्वाहिशों ने छीना है अब इन से कह दो कि मुझ पर करम किया जाए मैं ज़ख़्म खा के मुसलसल इसी तलाश में हूँ किसी बहाने अब आँखों को नम किया जाए जो हो न पाए वज़ीफ़ा भी कारगर कोई तो ख़ुद पे 'मीर' के शे'रों को दम किया जाए