मौत से दर्द-ए-मोहब्बत की दवा माँगी है मैं ने ख़ुद अपनी ख़ताओं की सज़ा माँगी है तोड़ मत बहर-ए-ख़ुदा आस दिल-ए-पुर-ग़म की मैं ने ज़ालिम तिरे मिलने की दुआ माँगी है रहमतें उस की तबाही-ए-वफ़ा पर जिस ने मरते-मरते तिरे दामन की हवा माँगी है मैं ने कुछ और नहीं चाहा ख़ुदा-ए-ग़म से बस तिरे हुस्न की हर एक बला माँगी है अपने सर आप न लें दिल-शिकनी का इल्ज़ाम मैं ने ख़ुद अपनी तबाही की दुआ माँगी है हाए क्या चीज़ है 'साहिर' ये मिरा हुस्न-ए-तलब मैं ने हर चीज़ ज़माने से जुदा माँगी है