मजबूर हूँ आह कर रहा हूँ नादिम हूँ गुनाह कर रहा हूँ फूलों की तलाश है नज़र को काँटों पे निगाह कर रहा हूँ ऐ बर्क़ ठहर कि अपना गुलशन मैं ख़ुद ही तबाह कर रहा हूँ बस एक तिरी ख़ुशी की ख़ातिर हर ग़म से निबाह कर रहा हूँ उस की नज़र अपनी सम्त पा कर हर सम्त निगाह कर रहा हूँ मंज़िल का तो कुछ पता नहीं है सज्दे सर-ए-राह कर रहा हूँ किस चीज़ की जुस्तुजू है 'दानिश' हर शय पे निगाह कर रहा हूँ