मजबूर-ए-शब को सुब्ह का मुख़्तार देख कर हैराँ है अक़्ल वक़्त की रफ़्तार देख कर बीमार को है आप के आने का इंतिज़ार सब रो रहे हैं हालत-ए-बीमार देख कर अहबाब की तसल्लियाँ ख़ुद ज़ख़्म बन गईं घबरा रहा हूँ कसरत-ए-ग़म-ख़्वार देख कर अंजाम-ए-फ़स्ल-ए-गुल पे है मेरी निगाह दोस्त ख़ूँ रो रहा हूँ रंग-ए-चमन-ज़ार देख कर किस ने फ़लक का चाँद ज़मीं पर बिछा दिया आया ख़याल रहगुज़र-ए-यार देख कर शबनम हो जैसे दामन-ए-नर्गिस में ख़ंदा-ज़न समझा मैं उन की चश्म-ए-गुहर-बार देख कर फिर मेरे ग़ौरो-ओ-फ़िक्र की क़िस्मत जगा भी दे मुद्दत हुई है तुझ को ज़िया-बार देख कर 'अख़्तर' सुकून-ए-दिल के सिवा थी हर एक शय हम लौट आए रौनक़-ए-बाज़ार देख कर