मंज़र-ए-शाम-ए-अलम भी नहीं देखे जाते क्या सितम है कि सितम भी नहीं देखे जाते अहल-ए-ग़म अपनी तबीअ'त से हैं मजबूर बहुत तेरे अंदाज़-ए-करम भी नहीं देखे जाते इतनी उजलत से जबीं झुकती है सज्दे के लिए आँख से नक़्श-ए-क़दम भी नहीं देखे जाते कम-निगाही भी मुसीबत है शरीफ़ों के लिए बंद मुट्ठी के भरम भी नहीं देखे जाते तब्सिरा करते हैं क्यों लोग मिरी हालत पर जाने क्यों उन के करम भी नहीं देखे जाते उन की मंज़िल की तरफ़ बढ़ते हैं जिस दम 'अख़्तर' राह में दैर-ओ-हरम भी नहीं देखे जाते