मकाँ बेचा नहीं मैं ने गुज़ारा चल रहा है नदी अपनी जगह पर है किनारा चल रहा है इबादत में अभी मशग़ूल हैं इन को न छेड़ो वफ़ा किस से करेंगे इस्तिख़ारा चल रहा है मैं ख़ुद पर्वाज़ से अपनी परेशाँ आज-कल हूँ ज़माना है ज़मीं पर और बिचारा चल रहा है न समझाओ मुझे यूँ हीर और राँझे का चक्कर वही है नाँ जो बरसों से हमारा चल रहा है अभी कुछ देर पहले जिस को राज़ी कर लिया था 'नवेद' उस से मिरा झगड़ा दोबारा चल रहा है