मकाँ और भी हैं ज़माँ और भी हैं तिरे शौक़ के राज़-दाँ और भी हैं लब-ए-शिकवा-संज-ए-मोहब्बत न घबरा तिरे बज़्म में हम-ज़बाँ और भी हैं दर-ए-मय-कदा है अगर बंद वाइ'ज़ ख़ुदा रक्खे पीर-ए-मुग़ाँ और भी हैं अगर इक कमाँ-कश ने नज़रें चुराईं तो दुनिया में अबरू-कमाँ और भी हैं न इतराएँ औराक़-ए-गुल पर अनादिल कि ज़ेब-ए-चमन गुल-रुख़ाँ और भी हैं नहीं ख़ातम-ए-शौक़ फ़र्हाद-ओ-मजनूँ तलबगार-ए-कू-ए-बुताँ और भी हैं ग़ज़ालान-ए-रम-ख़ुर्दा-ओ-शोख़-दीदा हसीनान-ए-आहू-वशाँ और भी हैं बहुत मत चहक क़ुमरी-ए-सर्व-ए-ख़ूबी गिरफ़्तार-ए-तौक़-ए-गिराँ और भी हैं फ़क़त एक मज़हर न था जान-ए-जानाँ अज़ीज़ो अभी जान-ए-जाँ और भी हैं लुटा दी मय-ए-ख़ून-ए-दिल फिर भी 'नक़वी' तलबगार-ए-रत्ल-ए-गिराँ और भी हैं