न हम किसी के लिए हैं न तुम किसी के लिए बने हैं दोनों मोहब्बत की ज़िंदगी के लिए ख़ुदा-ए-इश्क़ करम हो कि दम निकलता है बुतान-ए-दीदा-ओ-दिल कुछ तो आज़री के लिए सहर से शाम तलक अक़्ल के धुँदलके में भटकते फिरते हैं हम दिल की रौशनी के लिए वुफ़ूर-ए-शौक़-ए-तकल्लुम से चुप हुए थे कभी तरस रहे हैं उसी दिन से ख़ामुशी के लिए मिरे सवाल-ए-तमन्ना पे हँस के चुप रहना ये दिल लगी के लिए था कि दिल-लगी के लिए हमारे जज़्ब-ए-नज़र की कराहतें देखें यहाँ तुम आए थे बस एक दो घड़ी के लिए ये दर्द-ए-दिल तो बड़े काम की है चीज़ ऐ दोस्त मगर है शर्त कि काम आए आदमी के लिए न था ये इल्म कि हँसने में जान जाती है कली शगुफ़्ता हुई थी उस आगही के लिए मिरे सरिश्क-ए-तबस्सुम का राज़ क्या समझो ये दिल-लगी के लिए है न बे-दिली के लिए न देखो तूर की जानिब हज़र करो 'नक़वी' मआल-ए-जुरअत-ए-मूसा है रौशनी के लिए