मक़्सद हासिल नहीं हो या हो जो होना है जल्द ऐ ख़ुदा हो उल्फ़त है पास-ए-वज़्अ' का नाम मरते मर जाओ पर निबाहो दिल में नहीं ख़ूब मैल रखना जो शिकवा गिला हो बरमला हो क्या होता है फ़र्श बोरिया से लाज़िम है कि क़ल्ब बे-रिया हो इक जाम ही तो पिला दे लिल्लाह ऐ पीर-ए-मुग़ाँ तेरा भला हो दरकार उसे मदद है किस की जिस को अल्लाह का आसरा हो उस दिल की जलन जो देख पाए शम-ए-सोज़ाँ चराग़-पा हो क्या और भला कहूँ मैं तुम को तुम हज़रत-ए-इश्क़ बद-बला हो कहने को तो कह गए हो सब कुछ अब कोई जवाब दे तो क्या हो दिल ज़ीस्त से सर्द हो गया है ऐ सोज़-ए-जिगर तिरा बुरा हो बे-ऐब कोई नहीं है 'कैफ़ी' गर हो तो वो ज़ात-ए-किब्रिया हो