मक़्तल से मेरा कासा-ए-सर कौन ले गया उस तक ये दिल-ख़राश ख़बर कौन ले गया चेहरे पे गर्द-ए-राह भी बाक़ी नहीं रही मुझ से मिरा सुबूत-ए-सफ़र कौन ले गया रास आ चली थी दिल की फ़ज़ा-ए-जुनून-ए-शौक़ बहका के मुझ को दश्त से घर कौन ले गया बे-लौस दोस्ती के ज़माने कहाँ गए सरमाया-ए-ख़ुलूस-ए-बशर कौन ले गया ये देखने की कोई ज़रूरत नहीं रही किस का हुनर था दाद-ए-हुनर कौन ले गया घर से निकल पड़े हैं तो अब क्या ये देखना रस्ते से साया-दार शजर कौन ले गया दरिया वही है उस की रवानी वही मगर रू-पोश था जो तह में गुहर कौन ले गया आमाल अपने देख के ये तज्ज़िया भी कर 'नाज़िर' तिरी दुआ से असर कौन ले गया