ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना मुँह क़यामत में दिखा सकने के क़ाबिल देना ना-तवानों के सहारे को है ये भी काफ़ी दामन-ए-लुत्फ़ ग़ुबार-ए-पस-ए-महमिल देना ज़ौक़ में सूरत-ए-मौज आ के फ़ना हो जाऊँ कोई बोसा तो भला ऐ लब-ए-साहिल देना हाए रे हाए तिरी उक़्दा-कुशाई के मज़े तू ही खोले जिसे वो उक़्दा-ए-मुश्किल देना एक फ़ित्ना है क़यामत में बहार-ए-फ़िरदौस जुज़ तिरे कुछ भी न चाहे मुझे वो दिल देना दर्द का कोई महल ही नहीं जब दल के सिवा मुझ को हर उज़्व के बदले हमा-तन दिल देना