वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी मिल कर भी न मिलने की अदा याद रहेगी मुमकिन है मिरे बाद भुला दें मुझे लेकिन ता उम्र उन्हें मेरी वफ़ा याद रहेगी जब मैं ही नहीं याद रफ़ीक़ान-ए-सफ़र को हैराँ हूँ कि मंज़िल उन्हें क्या याद रहेगी कुछ याद रहे या न रहे ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ ग़ुंचों के चटकने की सदा याद रहेगी महरूम रहे अहल-ए-चमन निकहत-ए-गुल से बेगानगी-ए-मौज-ए-सबा याद रहेगी पलकों पे लरज़ते रहे 'अनवर' जो शब-ए-ग़म मुझ को उन्हीं तारों की ज़िया याद रहेगी