मख़्लूक़ थे पे ख़ालिक़-ओ-ख़ल्लाक़ हो गए भूखों को यूँ मिला है कि रज़्ज़ाक़ हो गए मासूम सूरतें तो दिल-ओ-जाँ ही ले गईं जो भोले-भाले लोग थे क़ज़्ज़ाक़ हो गए ताज़ा सा कुछ लहू है रग-ए-संग-ओ-ख़िश्त में लगता है कोई यार से उश्शाक़ हो गए रस्मी से इस मिलाप की अल्लाह ख़ैर हो क्या क्या दिलों में प्यार के मीसाक़ हो गए कल वाइ'ज़ों के हाँ भी तिरा ज़िक्र-ए-ख़ैर था ये नेक-बख़्त क्यों तिरे मुश्ताक़ हो गए कस्ब-ए-मआश ने किया अस्लाफ़ से जुदा गो ना-ख़लफ़ नहीं थे मगर आक़ हो गए सूरज पे जैसे शब ने सियाही उंडेल दी 'एजाज़' यूँ हयात के औराक़ हो गए