तुझ को पा कर भी ग़र्क़-ए-यास मिला दिल ही कम-बख़्त ना-सिपास मिला हुस्न-ए-आलम में और क्या होता हुस्न-ए-आलम तो तेरे पास मिला उफ़ रे जल्दी अदम से आने की जिस को देखा वो बे-लिबास मिला हिज्र में ज़िक्र-ए-वस्ल-ए-यार तो छेड़ तल्ख़ी-ए-ग़म में कुछ मिठास मिला आ दिखाऊँ तुझे भी जल्वा-ए-दोस्त मेरी आँखों में अपनी प्यास मिला जिस पे तकिया हुआ मुक़द्दर का वो सितारा ही बे-असास मिला बात का इज़्न-ए-आम था 'एजाज़' पर किसे हर्फ़-ए-इल्तिमास मिला