माना कि ज़िंदगी में कुछ अच्छा नहीं किया लेकिन ज़मीर का कभी सौदा नहीं किया रुस्वा हुए हैं ख़ुद उसे रुस्वा नहीं किया चुप-चाप खाए ज़ख़्म तमाशा नहीं किया सज्दे में जब झुकाया तो दिल से झुकाया सर हम ने वफ़ा की राह में धोका नहीं किया शायद तराश कर मुझे मूरत बनाए वो पत्थर से ख़ुद को इस लिए शीशा नहीं किया तोड़े हैं जाम तारे गिने बदली करवटें आ देख तेरी याद में क्या क्या नहीं किया डसते हैं सारे ख़्वाब जो बचपन में देखे थे 'ग़ाफ़िल' जवानी में जिन्हें पूरा नहीं किया