मनाते रहिए मातम ज़िंदगी का नया अंदाज़ है ये ख़ुद-कुशी का कभी थामा था दामन शायरी का वही अब बन गया जंजाल जी का यहाँ चर्चा बहुत है रौशनी का उजाला है मगर कुछ फीका फीका भटकते फिर रहे हैं कितने मिसरे किसी से रब्त तो बैठे किसी का ये कैसा दौर आया उठ गया है भरोसा आदमी से आदमी का