वही सब से मुक़द्दस मुद्दआ' है जो अब तक अन-कहा है अन-सुना है जो मेरा है वही उस का ख़ुदा है वो इतना भी नहीं पहचानता है मिरी ख़ामोशियों में इल्तिजा है समाअ'त और सुख़न में क्या रखा है वो कुछ ऐसा हुनर भी जानता है कि दुनिया की नज़र में पारसा है ये दिल का दर्द सच-मुच ला-दवा है असदुल्लाह 'ग़ालिब' ने कहा है ख़यालों का इक ऐसा दायरा है जहाँ पर इब्तिदा ही इब्तिदा है वो वैसे तो बहुत नादान सा हे मोहब्बत की नज़र पहचानता है कभी हम को मयस्सर हो न पाई ख़ुशी होती तो है हम ने सुना है अँधेरों से कहो मातम मनाएँ कहीं कोई दिया रौशन हुआ है