माँगते हैं मौत जो वो मौत जाने भी नहीं मौत आने से फ़क़त जाती हैं जानें ही नहीं सोचती थी तुम से मिल कर ज़िंदगी को क्या हुआ फिर ख़याल आया कि पहले ज़िंदगी ही थी नहीं एक सागर आसमाँ से मिलने को है उठ रहा एक धरती डूबती है कुछ मगर कहती नहीं एक शब की है कहानी ज़िंदगी सारी मिरी ज़िंदगी तो ढल गई वो शब मगर ढलती नहीं इंक़िलाबी ये परिंदे उड़ के जाएँगे कहाँ पेड़ तक महदूद हो जो वो तो आज़ादी नहीं तब सितारा दूर था लेकिन बहुत था रात को अब है पहलू में सितारा शब मगर वैसी नहीं क़िस्सा-गोई का हुनर भी ख़ूब है माना मगर तुम वो कैसे सह रहे हो तुम पे जो गुज़री नहीं