नहीं मिलते जहाँ में ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ देखने वाले बहुत मिल जाएँगे चाक-ए-गरेबाँ देखने वाले ख़ुदा जाने ये क्या तासीर है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में परेशाँ हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ देखने वाले नज़र के होश उड़ जाते हैं बाज़-औक़ात उजाले में नज़र रक्खें अंधेरे में चराग़ाँ देखने वाले तुम्हें तूफ़ाँ से क्या निस्बत तुम्हें साहिल पे रहना है सलामत हैं अभी हम ज़ोर-ए-तूफ़ाँ देखने वाले यहाँ इंसानियत की नब्ज़ है बेचैन रुकने को ख़ुदा जाने कहाँ हैं नब्ज़-ए-दौराँ देखने वाले दिल-ए-पुर-दर्द में कुछ दाग़ रौशन हम भी रखते हैं इधर आएँ ज़रा बज़्म-ए-चराग़ाँ देखने वाले तसव्वुर में सफ़र नज़रों का किस से तय हुआ 'अख़्तर' कहाँ हैं उन को नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ देखने वाले