रह गया क्या समाज मुट्ठी भर लोग करते हैं राज मुट्ठी भर लूट ले कोई इज़्ज़त-ओ-इस्मत और दे दे अनाज मुट्ठी भर सल्तनत चार सम्त फैली है और सर पे है ताज मुट्ठी भर फिर पलट के वो दौर आएगा लोग लेंगे ख़िराज मुट्ठी भर कल ज़माना मिलाएगा आवाज़ लोग आए हैं आज मुट्ठी भर फ़स्ल आई है ख़ूब खेतों में नहीं घर में अनाज मुट्ठी भर बरसर-ए-इक़्तिदार हैं 'मंज़र' लोग बे-तख़्त-ओ-ताज मुट्ठी भर