साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-कज-शिआ'र कहाँ ये करम और बार-बार कहाँ हुस्न को ख़ू-ए-एहतियात ग़ज़ब इश्क़ को ज़ब्त-ए-इंतिज़ार कहाँ दो-घड़ी ठहर जा रुपहली शाम रोज़ मिलते हैं जाँ-निसार कहाँ एक दरवेश-ए-बे-गलीम से पूछ दिल पे दुनिया का इख़्तियार कहाँ ऐ शब-ए-इंतिज़ार ख़त्म न हो और बाक़ी है अब क़रार कहाँ उफ़ जिगर चीरती हुई आवाज़ कोई रोता है ज़ार-ज़ार कहाँ देख फूलों से जल गए दामन अब चराग़ों का ए'तिबार कहाँ पैकर-ए-हुस्न बिजलियाँ न गिरा अब सकत और चश्म-ए-यार कहाँ हाँ बता दे कहाँ रहूँ बेहोश और रहना है होशियार कहाँ तेरा 'बज़्मी' शहीद-ए-जाम-ए-अलस्त इस को ख़ौफ़-ए-सलीब-ओ-दार कहाँ