साँस लेते रहें कि मर जाएँ तुझ से बिछड़े हुए किधर जाएँ नश्तरो कारकर्दगी न रुके यूँ न होवे कि ज़ख़्म भर जाएँ एक शब आप के मोहल्ले में रो गुज़ारें तो अपने घर जाएँ आ ही पहुँचे हैं याँ तो फिर तुम को क्यों न जी-भर के देख कर जाएँ सुन्नत-ए-यार को रखें मलहूज़ 'अहद-ओ-पैमाँ करें मुकर जाएँ 'इश्क़ की दरस-गाह में हम लोग ऐसे बिगड़ें कि बस सुधर जाएँ नुक़्ता हो जाएँ तेरे कहने पर तेरी आवाज़ पर बिखर जाएँ रोते रहना हयात है 'काज़िम' रो न पाएँ तो घुट के मर जाएँ