मंज़िल है न कोई सफ़र है जाने ये कैसी राहगुज़र है मैं जिस को पहचान रहा हूँ शायद वो मेरा ही घर है नादानों की भीड़ में खोया शायद कोई दानिश-वर है क्या तौक़ीर है अहल-ए-फ़न की क्या ए'ज़ाज़-ए-अहल-ए-हुनर है मेरा घर सारी दुनिया का सारी दुनिया मेरा घर है नश्शा टूटने से पहले ही हम सो जाएँ तो बेहतर है कैसे 'कँवल' तय होगा हम से ख़्वाबों के जंगल का सफ़र है