मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर की गहराई चारासाज़ों को कब नज़र आई जैसे कुछ कह रही हो ख़ामोशी जैसे कुछ सुन रही हो तन्हाई शौक़ ने हम को अक़्ल बख़्शी थी अक़्ल ने कर दिया है सौदाई हम को दोनों अज़ीज़ हैं ऐ दिल वो तिरी बज़्म हो कि तन्हाई एक परछाईं की तलाश हमें दोनों आलम से दूर ले आई खो गया ज़ेहन-ओ-दिल का सरमाया लुट गई फ़िक्र-ओ-फ़न की रानाई