मंज़िल को ढूँढना है तो अपनी नज़र में ढूँड या मुफ़लिसों की भीगी हुई चश्म-ए-तर में ढूँड ग़म और ख़ुशी में फ़ासला गर ढूँढता है तू रातों के घुप अंधेरे में नूर-ए-सहर में ढूँड वो कौन है जो करता है शाख़ों को बारवर उस का सुराग़ फूल में बर्ग-ओ--शजर में ढूँड ये ज़िंदगी मिलेगी लहू ही में तर-ब-तर अम्न-ओ-अमाँ में ढूँड कि ख़ौफ़-ओ-ख़तर में ढूँड अश्कों की मौज-ए-यम में तू कश्ती चला के देख वो हर जगह मिलेगा उसे बहर-ओ-बर में ढूँड रहबर के इंतिज़ार में 'महशर' है किस लिए मंज़िल का अपनी रास्ता गर्द-ए-सफ़र में ढूँड