मंज़िल न दे चराग़ न दे हौसला तो दे तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे मैं ने ये कब कहा कि मिरे हक़ में हो जवाब लेकिन ख़ामोश क्यों है कोई फ़ैसला तो दे बरसों मैं तेरे नाम पे खाता रहा फ़रेब मेरे ख़ुदा कहाँ है तू अपना पता तो दे बे-शक मिरे नसीब पे रख अपना इख़्तियार लेकिन मिरे नसीब में क्या है बता तो दे मैं ख़ुद ही खो गया तुझे पाने की फ़िक्र में अब ऐ ग़म-ए-हयात कोई रास्ता तो दे