मंज़िल थी इक तरफ़ तो सफ़र दूसरी तरफ़ इक सम्त पैर उठे थे नज़र दूसरी तरफ़ इक सम्त खींचती है मिरी ज़िंदगी मुझे ले जाता है जुनून मगर दूसरी तरफ़ आवारगी का लुत्फ़ तो बे-माएगी में है छोड़ आया हूँ मैं रख़्त-ए-सफ़र दूसरी तरफ़ ये अह्द-ए-ना-मुराद भी क्या शय है मेरी जाँ दिल एक तरफ़ है तो नज़र दूसरी तरफ़